देहरादून: राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स कर रहे स्टूडेंट्स को रियल ह्यूमन बॉडी की जगह 3D कैडेवर के माध्यम से पढ़ाई कराई जाएगी। एमसीआई यानी मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया की गाइडलाइन के तहत पढ़ाई के लिए हर 10 स्टूडेंट्स पर एक डेड बॉडी की जरूरत होनी चाहिए, ताकि शरीर के विभिन्न अंगों का छात्र गहनता से अध्ययन कर सकें, लेकिन रियल ह्यूमन बॉडी के अभाव में दून मेडिकल कॉलेज की छात्र-छात्राएं अब 3D वर्चुअल डिसेक्टर के माध्यम से पढ़ाई कर सकेंगे।
इस तकनीक के माध्यम से एमबीबीएस कोर्स कर रहे छात्र-छात्राएं शरीर का शोध कर पाएंगे। 3D कैडेवर यानी वर्चुअल रूपक शव के परीक्षण की शुरुआत दून मेडिकल कॉलेज में कर दी है। जिसके जरिए डॉक्टर बनने का सपना देख रहे स्टूडेंट बिना ह्यूमन रियल बॉडी के वर्चुअल माध्यम से शरीर के अंगों को बारीकी से जान सकेंगे। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर आशुतोष सयाना ने कहा इस तकनीक के माध्यम से मेडिकल के छात्र-छात्राओं को मानव शरीर की संरचना के बारे में बताया जाएगा। उन्होंने बताया यह एक मशीन होती है। इसके द्वारा हमारे एमबीबीएस और पैरामेडिकल का कोर्स कर रहे हैं स्टूडेंट्स ह्यूमन बॉडी की एनाटॉमी को बारीकी से समझ पाएंगे।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर आशुतोष सयाना ने बताया इस तकनीक से शरीर की स्किन,टिशु, मसल्स, हड्डी, नसें, आर्टिरीज सहित बॉडी की समस्त संरचनाओं के बारे में सिखाया जाता है। उन्होंने कहा पहले कैडेवर यानी लाश मेडिकल स्टूडेंट्स को अध्ययन करने के लिए मिला करती थी, लेकिन अब इसकी कमी हो गई है। डॉ सयाना के मुताबिक पहले मेडिकल कॉलेजों को रियल कैडेवर यानी रियल ह्यूमन बॉडी छात्रों को प्रैक्टिकल की पढ़ाई के लिए मिला करती थी, लेकिन अब एक भी बॉडी नहीं मिल पा रही है। डेड बॉडीज की कमी के कारण यह तकनीक निकाली गई है।