21.2 C
Dehradun
Saturday, November 23, 2024

Buy now

जानिए श्री गुरु पूर्णिमा महोत्सव में निहित आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक तथ्य

शताब्दियों पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। वही वेद व्यास जी, जिन्होंने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर चार वेदों के रूप में वर्गीकरण किया था। 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनीबद्ध करने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।
ऐसे महान गुरुदेव के ज्ञान-सूर्य की रश्मियों में जिन शिष्यों ने स्नान किया, वे अपने गुरुदेव का पूजन किए बिना न रह सके। इसलिए शिष्यों ने उनके अवतरण के मंगलमय एवं पुण्य दिवस को पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन-वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है।
गुरु पूर्णिमा और प्राचीन गुरुकुल
गुरुकुल का वर्धन और फैलाव!
प्राचीन काल में गुरु पूर्णिमा का दिन एक विशेष दिन के रूप में मनाया जाता था। इस दिन केवल उत्सव नहीं, महोत्सव होता था। गुरुकुल से सम्बन्धित दो सबसे मुख्य कार्य इसी दिन किए जाते थे। पहला- गुरु पूर्णिमा के शुभ-मुहुर्त पर ही नए छात्रों को गुरुकुल में प्रवेश मिलता था। यानी गुरु-पूर्णिमा दिवस एडमिशन डे (छात्र प्रवेश दिवस) हुआ करता था। सभी जिज्ञासु छात्र इस दिन हाथों में समिधा लेकर गुरु के समक्ष आते थे। प्रार्थना करते थे- ‘‘हे गुरुवर, हमारे भीतर ज्ञान-ज्योति प्रज्वलित करें। हम उसके लिए स्वयं को समिधा रूप में अर्पित करते हैं। ‘‘दूसरा- गुरु पूर्णिमा की मंगल बेला में ही छात्रों को स्नातक उपाधियाँ प्रदान की जाती थीं। यानी गुरु पूर्णिमा दिवस कॉन्वकेशन डे (दीक्षांत दिवस) भी होता था। जो छात्र गुरु की सभी शिक्षाओं को आत्मसात कर लेते थे और जिनकी कुशलता व क्षमता पर गुरु को संदेह नहीं रहता था, उन्हें इस दिन प्रमाण-पत्र प्राप्त होता था। वे गुरु-चरणों में बैठकर प्रण लेते थे- ‘‘गुरुवर, आपके सानिध्य में रहकर, आपकी कृपा से हमने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे लोक-हित और कल्याण के लिए लगाएँगे।’’ अपने गुरुदेव को यह दक्षिणा देकर छात्र विश्व-प्रांगण में यानी अपने कार्य-क्षेत्र में उतरते थे। अतः प्राचीन काल में गुरु-पूर्णिमा के दिन गुरुकुलों में गुरु का कुल (अर्थात शिष्यगण) बढ़ता भी था और विश्व में फैलता भी था।
गुरु पूर्णिमा और वैज्ञानिकता
साधक की आत्म-उन्नति का दिन!
वैज्ञानिक भी आषाढ़ पूर्णिमा की महत्ता को अब समझ चुके हैं। ‘‘विस्डम ऑफ ईस्ट’’ पुस्तक के लेखक आर्थर चार्ल्स स्टोक लिखते हैं- जैसे भारत द्वारा खोज किए गए शून्य, छंद, व्याकरण आदि की महिमा अब पूरा विश्व गाता है, उसी प्रकार भारत द्वारा उजागर की गई सद्गुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व जानेगा। यह भी जानेगा कि अपने महान गुरु की पूजा के लिए उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना? ऐसा क्या खास है इस दिन में? स्टोक ने आषाढ़ पूर्णिमा को लेकर कई अध्ययन व शोध किए। इन सब प्रयोगों के आधार पर उन्होंने कहा- ‘वर्ष भर में अनेकों पूर्णिमाएँ आती हैं- शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा… आदि। पर आषाढ़ पूर्णिमा भक्ति व ज्ञान के पथ पर चल रहे साधकों के लिए एक विशेष महत्त्व रखती है। इस दिन आकाश में अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (पराबैंगनीविकिरण) फैल जाती हैं। इस कारण व्यक्ति का शरीर व मन एक विशेष स्थिति में आ जाता है। उसकी भूख, नींद व मन का बिखराव कम हो जाता है।’’ अतः यह स्थिति साधक के लिए बेहद लाभदायक है। वह इसका लाभ उठाकर अधिक-से-अधिक ध्यान-साधना कर सकता है। कहने का भाव कि आत्म-उत्थान व कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अति उत्तम है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को श्री गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

गुरुदेव आशुतोष महाराज
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
3,888FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -

Latest Articles